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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core Aroh Bhag 2 ( आरोह भाग 2) Chapter 1 - Sindhu Sabhyata (सिंधु सभ्यता)
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core Vitan Bhag 2 ( वितान भाग 2 ) Chapter 3 - अतीत में दबे पाँव

अभ्यास प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1

सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?

उत्तर:

सिंधु सभ्यता की साधन-संपन्नता और आडंबर रहित जीवनशैली का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह सभ्यता अपने समय की सर्वाधिक विकसित और संपन्न सभ्यता थी, किंतु इसमें दिखावे की प्रवृत्ति बिल्कुल नहीं थी। इस सभ्यता की साधन-संपन्नता के अनेक प्रमाण मिलते हैं। सबसे पहले इनकी उन्नत नगर नियोजन व्यवस्था को देखते हैं जो उस समय के लिए अत्यंत उन्नत थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सड़कें चौड़ी, सीधी और व्यवस्थित थीं। इनकी जल निकासी प्रणाली इतनी उत्कृष्ट थी कि आज भी आधुनिक शहरों में ऐसी व्यवस्था दुर्लभ है।

इनकी तकनीकी प्रगति भी असाधारण थी। कांस्य युग की श्रेष्ठ शिल्प कला के नमूने मिले हैं जो उनकी उच्च तकनीकी क्षमता को दर्शाते हैं। मिट्टी के बर्तन, मुहरें, और कलात्मक वस्तुएं उनकी कलात्मक परिष्कृतता को प्रमाणित करती हैं। व्यापारिक संबंध मेसोपोटामिया तक फैले हुए थे जो उनकी आर्थिक समृद्धता का प्रमाण है। कृषि तकनीक भी उन्नत थी और वे अनाज का भंडारण भी करते थे। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट होता है कि यह सभ्यता भौतिक रूप से अत्यंत संपन्न थी।

किंतु इस साधन-संपन्नता के बावजूद इनमें भव्यता का आडंबर नहीं था। इसके कई स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां कोई विशाल राजप्रासाद या स्मारक नहीं मिले हैं जैसे कि मिस्र के पिरामिड या बेबीलोन के झूलते बगीचे। सभी मकान लगभग समान आकार के हैं जो सामाजिक समानता का प्रतीक है। किसी विशेष वर्ग के लिए बने विशाल भवन नहीं मिले हैं। महान स्नानागार जैसी संरचनाएं भी सामुदायिक उपयोग के लिए थीं, व्यक्तिगत प्रदर्शन के लिए नहीं।

इस सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इन्होंने व्यावहारिकता को प्राथमिकता दी थी। हर निर्माण उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया गया था। जल प्रबंधन, स्वच्छता व्यवस्था, और दैनिक जीवन की सुविधाओं पर अधिक ध्यान दिया गया था बजाय दिखावे के। यहां तक कि कलात्मक वस्तुएं भी उपयोगी थीं, केवल सजावट के लिए नहीं। यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि ये लोग सादगी में विश्वास रखते थे और अनावश्यक प्रदर्शन से बचते थे। इस प्रकार सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न होते हुए भी आडंबरहीन थी क्योंकि इसकी प्राथमिकता जीवन की गुणवत्ता में सुधार थी, दिखावे में नहीं।

प्रश्न 2

'सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।' ऐसा क्यों कहा गया?

उत्तर:

सिंधु सभ्यता के सौंदर्य-बोध की प्रकृति को समझने के लिए हमें उस समय की अन्य सभ्यताओं से तुलना करनी होगी। सामान्यतः प्राचीन सभ्यताओं में सौंदर्य और कला का विकास दो मुख्य कारणों से होता था - राजसत्ता का संरक्षण या धार्मिक संस्थानों का समर्थन। मिस्र की सभ्यता में फैरो के लिए विशाल पिरामिड बनाए गए, बेबीलोन में राजाओं के लिए भव्य महल और झूलते बगीचे बनाए गए। इसी प्रकार अधिकांश प्राचीन सभ्यताओं में मंदिर, देवी-देवताओं की मूर्तियां और धार्मिक स्मारक मिलते हैं जो धर्म-पोषित सौंदर्य के उदाहरण हैं।

किंतु सिंधु सभ्यता में ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिलते। यहां न तो किसी राजा या सम्राट की विशाल मूर्ति मिली है और न ही कोई राजप्रासाद। कोई ऐसा स्मारक नहीं मिला जो किसी शासक की महानता का प्रदर्शन करता हो। इसी प्रकार यहां विशाल मंदिर या देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां भी नहीं मिलीं। धार्मिक आडंबर के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं। यदि कोई धार्मिक प्रतीक मिले भी हैं तो वे सरल और व्यावहारिक हैं, भव्य नहीं।

इसके विपरीत सिंधु सभ्यता का सौंदर्य-बोध पूर्णतः समाज-केंद्रित था। महान स्नानागार का निर्माण सामुदायिक उपयोग के लिए किया गया था, किसी व्यक्तिविशेष के लिए नहीं। यह पूरे समुदाय की स्वच्छता और स्वास्थ्य की आवश्यकता को पूरा करता था। नगर नियोजन में जो व्यवस्था दिखाई देती है वह सभी नागरिकों के कल्याण को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। हर घर तक पानी की पहुंच, जल निकासी की व्यवस्था, चौड़ी सड़कें, और सफाई का प्रबंध सभी के लिए समान रूप से था।

सिंधु सभ्यता के कलात्मक नमूने भी इस बात का प्रमाण हैं। मिट्टी के बर्तन सुंदर होने के साथ-साथ उपयोगी भी थे। मुहरों पर की गई कलाकारी व्यापारिक आवश्यकता को पूरा करती थी। खिलौने बच्चों के मनोरंजन के लिए बनाए गए थे। नर्तकी की मूर्ति कलात्मक होने के साथ-साथ सामाजिक जीवन की झलक भी देती है। यह सब दिखाता है कि यहां कला और सौंदर्य का विकास समाज की आवश्यकताओं और रुचियों के अनुसार हुआ था।

इस समाज-पोषित सौंदर्य-बोध की एक और विशेषता यह थी कि यह समतावादी था। किसी विशेष वर्ग का वर्चस्व दिखाई नहीं देता। सभी घरों में मूलभूत सुविधाएं समान थीं। यह दिखाता है कि सौंदर्य और सुविधा को सभी के लिए उपलब्ध कराने की सोच थी। यही कारण है कि सिंधु सभ्यता का सौंदर्य-बोध अनूठा था क्योंकि यह न तो किसी शासक के आदेश पर विकसित हुआ था और न ही किसी धार्मिक संस्था के दबाव में। यह पूरे समाज की सामूहिक चेतना और आवश्यकताओं का परिणाम था जो इसे विशिष्ट और उल्लेखनीय बनाता है।

प्रश्न 3

पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि - "सिंधु-सभ्यता तकनीकी दृष्टि से संपन्न, किंतु उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था।"

उत्तर:

पुरातत्विक खुदाई से प्राप्त अवशेष सिंधु सभ्यता की तकनीकी उन्नति के स्पष्ट प्रमाण देते हैं। सबसे प्रभावशाली प्रमाण नगर नियोजन के क्षेत्र में मिलता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सड़कें एकदम सीधी और व्यवस्थित हैं। मुख्य सड़कें 30 से 34 फीट चौड़ी हैं जो उस समय के लिए असाधारण है। सड़कों का ग्रिड सिस्टम एकदम आधुनिक शहरी नियोजन के समान है। चौराहों पर सड़कें समकोण पर मिलती हैं जो वैज्ञानिक सोच का परिचायक है। यह सब बिना किसी आधुनिक उपकरण के केवल गणितीय बुद्धि से किया गया था।

जल प्रबंधन तकनीक में इनकी सिद्धता अद्वितीय थी। हर घर में निजी कुआं या सामुदायिक कुएं तक पहुंच थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भूमिगत नालियों का जटिल तंत्र बिछाया गया था जो आज भी इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है। ये नालियां ढकी हुई थीं और नियमित अंतराल पर सफाई के लिए मैनहोल बने हुए थे। गंदे पानी की निकासी घरों से लेकर मुख्य नाली तक की व्यवस्था इतनी सुचारू थी कि आधुनिक शहरों में भी ऐसी व्यवस्था देखने को नहीं मिलती। इससे यह स्पष्ट होता है कि वे जल विज्ञान और स्वच्छता के सिद्धांतों को अच्छी तरह समझते थे।

भवन निर्माण तकनीक भी अत्यंत उन्नत थी। उन्होंने मानकीकृत ईंटों का उपयोग किया था जिनका अनुपात 4:2:1 था। यह अनुपात इंजीनियरिंग की दृष्टि से आदर्श है क्योंकि यह मजबूती प्रदान करता है। ये ईंटें भट्टे में पकाई जाती थीं जो उन्हें टिकाऊ बनाता था। दो या तीन मंजिला मकान भी मिले हैं जो उनकी स्थापत्य कुशलता को दर्शाते हैं। नींव की तकनीक भी वैज्ञानिक थी और भवन निर्माण में जल प्रतिरोधी सामग्री का उपयोग किया जाता था।

शिल्प कौशल के क्षेत्र में भी उनकी तकनीकी दक्षता स्पष्ट दिखाई देती है। कांस्य की बनी नर्तकी की मूर्ति धातु विज्ञान की उच्च समझ को दर्शाती है। मुहरों पर उत्कृष्ट नक्काशी मिली है जो सूक्ष्म कलाकारी का प्रमाण है। मिट्टी के बर्तनों का चाक तकनीक से निर्माण और उन पर की गई चित्रकारी तकनीकी कुशलता को दिखाती है। मोती बनाने की तकनीक, रंगाई की प्रक्रिया, और सोने-चांदी के आभूषण बनाने की कला सभी उच्च तकनीकी ज्ञान के प्रमाण हैं।

किंतु इन सभी तकनीकी उपलब्धियों के बावजूद भव्यता का आडंबर नहीं मिलता। सबसे स्पष्ट प्रमाण यह है कि कोई विशाल राजप्रासाद या स्मारक नहीं मिला है। सभी घर लगभग समान आकार के हैं जो सामाजिक समानता का प्रतीक है। महान स्नानागार भी भव्य है लेकिन सामुदायिक उपयोग के लिए बनाया गया था, व्यक्तिगत प्रदर्शन के लिए नहीं। लोथल का गोदीबाड़ा तकनीकी रूप से उन्नत है लेकिन व्यावहारिक उद्देश्य से बनाया गया था। अन्नागार भी बड़े हैं लेकिन अनाज भंडारण की आवश्यकता के लिए, दिखावे के लिए नहीं।

इस प्रकार पुरातत्विक साक्ष्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि सिंधु सभ्यता तकनीकी रूप से अत्यंत संपन्न थी लेकिन उनकी सारी तकनीक व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए विकसित की गई थी। वे दिखावे या प्रदर्शन में विश्वास नहीं करते थे बल्कि जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने में अपनी तकनीकी क्षमता का उपयोग करते थे। यही कारण है कि उनकी सभ्यता आज भी प्रेरणादायक है।

प्रश्न 4

'यह सच है कि यहां किसी आंगन की छत-पूत्री सीढ़ियां अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, नहीं में आप इतिहास की नींव उन के पास हैं।' इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?

उत्तर:

लेखक के इस गहन और दार्शनिक कथन में सिंधु सभ्यता के महत्व की व्यापक व्याख्या निहित है। सबसे पहले लेखक भौतिक वास्तविकता का वर्णन करता है कि हड़प्पा के खंडहरों में जो सीढ़ियां मिली हैं वे अब कहीं नहीं ले जातीं क्योंकि समय के साथ ऊपरी मंजिलें नष्ट हो गई हैं। ये सीढ़ियां आकाश की तरफ अधूरी खत्म हो जाती हैं। यह एक मर्मस्पर्शी छवि है जो समय के प्रवाह और नश्वरता का प्रतीक है। लेकिन लेखक इस भौतिक वर्णन के पीछे एक गहरा दार्शनिक संदेश छुपाता है।

जब लेखक कहता है कि "उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं" तो वह सिंधु सभ्यता के वैश्विक महत्व की ओर इशारा करता है। दुनिया की छत पर होने का मतलब है कि आप मानव सभ्यता के सर्वोच्च स्थान पर खड़े हैं। सिंधु सभ्यता विश्व की प्राचीनतम नगरीय सभ्यताओं में से एक है और उस समय यह तकनीकी और सामाजिक दृष्टि से सबसे उन्नत थी। जब आप इन अवशेषों के बीच खड़े होते हैं तो आप अनुभव करते हैं कि आप उस स्थान पर हैं जहां से मानव सभ्यता ने अपनी यात्रा शुरू की थी।

दूसरी ओर जब लेखक कहता है "आप इतिहास की नींव के पास हैं" तो वह सिंधु सभ्यता की आधारभूत भूमिका को रेखांकित करता है। यह सभ्यता आधुनिक शहरी जीवन की नींव रखने वाली थी। नगर नियोजन, जल प्रबंधन, सामुदायिक जीवन, व्यापार, और तकनीकी विकास के जो सिद्धांत यहां विकसित हुए, वे आज भी हमारे जीवन का आधार हैं। इस अर्थ में यह सभ्यता इतिहास की नींव है और हम आज भी उसी नींव पर खड़े हैं।

लेखक का यह कथन समय की सापेक्षता को भी दर्शाता है। भले ही ये सीढ़ियां अब कहीं नहीं ले जातीं लेकिन वे हमें अतीत से जोड़ती हैं और भविष्य की दिशा दिखाती हैं। जब आप इन अधूरी सीढ़ियों पर खड़े होते हैं तो आप अनुभव करते हैं कि आप समय के उस बिंदु पर हैं जहां अतीत, वर्तमान और भविष्य मिलते हैं। यह एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है जो इतिहास की महानता और निरंतरता को दर्शाता है।

लेखक का आशय यह भी है कि हमें अपनी विरासत पर गर्व करना चाहिए। सिंधु सभ्यता के अवशेष हमें याद दिलाते हैं कि हमारे पूर्वज कितने उन्नत और बुद्धिमान थे। उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल कीं वे आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। इसलिए भले ही ये सीढ़ियां भौतिक रूप से अधूरी हों लेकिन वे हमारी चेतना को उच्चतम शिखर तक ले जाती हैं। इस प्रकार लेखक का यह कथन न केवल सिंधु सभ्यता के महत्व को दर्शाता है बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान और गौरव की भावना को भी जगाता है।

प्रश्न 5

टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनगिनत रहस्यों का भी दस्तावेज होते हैं- इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

लेखक का यह कथन खंडहरों के गहरे महत्व और उनकी बहुआयामी प्रकृति को उजागर करता है। सामान्यतः लोग खंडहरों को केवल पुराने पत्थरों और ईंटों का ढेर समझते हैं, लेकिन वास्तव में वे मानव इतिहास के जीवंत दस्तावेज हैं। सिंधु सभ्यता के खंडहर केवल भवनों के अवशेष नहीं हैं बल्कि वे हजारों वर्ष पहले जीवित रहे लोगों की कहानियों, उनके सपनों, संघर्षों, खुशियों और दुखों के मूक गवाह हैं। जब हम इन खंडहरों को देखते हैं तो हम केवल अतीत को नहीं देखते बल्कि उन लोगों के जीवंत जीवन की झलक पाते हैं जो कभी यहां रहते थे।

सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के रूप में ये खंडहर हमें तकनीकी प्रगति, सामाजिक व्यवस्था, और कलात्मक विकास की जानकारी देते हैं। नगर नियोजन की उत्कृष्टता, जल प्रबंधन की वैज्ञानिकता, और शिल्प कौशल की परिष्कृतता इन खंडहरों से स्पष्ट रूप से समझी जा सकती है। ये बताते हैं कि उस समय के लोग कितने सभ्य और संस्कृत थे। उनकी जीवनशैली, रहन-सहन, और दैनिक जीवन की व्यवस्था के बारे में ये खंडहर महत्वपूर्ण सूचनाएं देते हैं। व्यापारिक संबंध, कृषि व्यवस्था, और सामाजिक संरचना के प्रमाण भी इन अवशेषों से मिलते हैं।

लेकिन इन खंडहरों का सबसे मर्मस्पर्शी पहलू यह है कि वे धड़कती जिंदगियों के अनगिनत रहस्यों को छुपाए हुए हैं। हर टूटी दीवार, हर बिखरा हुआ बर्तन, हर छोटा खिलौना उस समय के लोगों के व्यक्तिगत जीवन की कहानी कहता है। जब हम मिट्टी के खिलौने देखते हैं तो हम उन बच्चों की कल्पना कर सकते हैं जो कभी इनसे खेलते रहे होंगे। रसोई के बर्तन उन माताओं की याद दिलाते हैं जो अपने परिवार के लिए भोजन बनाती होंगी। आभूषण और सजावटी वस्तुएं उन स्त्रियों के श्रृंगार और सौंदर्य प्रेम को दर्शाती हैं।

ये खंडहर उन भावनाओं और रिश्तों के भी साक्षी हैं जो मानवीय जीवन को जीवंत बनाते हैं। स्नानागार स्वच्छता के प्रति उनकी चेतना दर्शाते हैं। घरों की व्यवस्था पारिवारिक जीवन की झलक देती है। गलियों और चौराहों पर होने वाले सामाजिक मेल-जोल की कल्पना की जा सकती है। त्योहारों, उत्सवों, और सामुदायिक गतिविधियों के संकेत भी इन अवशेषों से मिलते हैं। प्रेम, मित्रता, पारिवारिक स्नेह, और सामुदायिक सहयोग की भावनाओं के प्रमाण इन खंडहरों में छुपे हुए हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन खंडहरों में वे अनकहे रहस्य भी छुपे हैं जिन्हें हम आज तक पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। सिंधु लिपि का न पढ़ा जाना इस बात का प्रमाण है कि अभी भी बहुत कुछ अनजाना है। उनकी सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक मान्यताएं, व्यक्तिगत संघर्ष, और आकांक्षाओं के बारे में हम अभी भी अनुमान ही लगा सकते हैं। यही रहस्यमयता इन खंडहरों को और भी आकर्षक बनाती है। इस प्रकार लेखक का कथन बिल्कुल सही है कि खंडहर केवल भौतिक अवशेष नहीं हैं बल्कि जीवंत इतिहास के दस्तावेज हैं जो अतीत की धड़कती जिंदगियों से हमें जोड़ते हैं।

प्रश्न 6

इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु उससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी एक ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर:

ताजमहल - प्रेम की अमर निशानी का व्यक्तिगत अनुभव:

जब मैंने पहली बार ताजमहल को देखा तो मन में एक अजीब सी भावना जागी। यमुना के तट पर स्थित यह श्वेत संगमरमर का स्मारक केवल एक मकबरा नहीं लगा बल्कि प्रेम, कला और इतिहास का एक जीवंत संगम दिखाई दिया। जैसे ही मैं मुख्य द्वार से प्रवेश किया, सामने फैला विशाल उद्यान और उसके मध्य में खड़ा भव्य ताजमहल देखकर मन श्रद्धा से भर गया। लगा जैसे कोई स्वप्निल दुनिया में पहुंच गया हूं जहां समय रुक गया हो और केवल सुंदरता और प्रेम का राज्य हो।

स्थापत्य की दृष्टि से ताजमहल की भव्यता अवर्णनीय थी। मुख्य गुंबद की शिल्पकारी इतनी उत्कृष्ट थी कि लगता था जैसे स्वर्ग से उतरकर धरती पर आ गया हो। चारों कोनों पर खड़ी मीनारें एकदम संतुलित और सुंदर दिखाई दे रही थीं। सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि दिन के अलग-अलग समय पर संगमरमर का रंग बदलता रहता था। सुबह के समय यह गुलाबी दिखता था, दोपहर में चमकदार सफेद, और शाम को सुनहरा हो जाता था। चांदनी रात में तो यह इतना मनमोहक लगता था कि लगता था जैसे चांद की किरणों से बनाया गया हो।

ताजमहल के अंदर का दृश्य और भी भावनात्मक था। शाहजहां और मुमताज महल की कब्रें देखकर मन में एक अजीब सी संवेदना जागी। मुख्य कब्र के चारों ओर संगमरमर पर की गई नक्काशी इतनी बारीक और सुंदर थी कि हैरानी होती थी कि मानवीय हाथों से इतना सूक्ष्म काम कैसे संभव हुआ होगा। दीवारों पर अरबी और फारसी भाषा में कुरान की आयतें लिखी हुई थीं जो काले पत्थरों से जड़े गए थे। यह सब देखकर उस समय के कारीगरों की कुशलता का अंदाजा लगाया जा सकता था।

इतिहास की दृष्टि से ताजमहल की कहानी अत्यंत मर्मस्पर्शी है। मुमताज महल की मृत्यु के बाद शाहजहां का दुख और उनका यह निश्चय कि वे अपनी प्रिय बेगम के लिए एक ऐसा स्मारक बनवाएंगे जो दुनिया में अनूठा हो, यह सब सोचकर दिल भर आता था। बाईस वर्षों तक निरंतर काम करने वाले हजारों कारीगरों की मेहनत और कलाकारी का परिणाम आज भी दुनिया को आश्चर्य में डालता है। यहां खड़े होकर यह अनुभव होता था कि प्रेम की शक्ति कितनी महान होती है कि वह पत्थरों में भी जान डाल सकती है।

व्यक्तिगत रूप से ताजमहल का दर्शन एक आध्यात्मिक अनुभव था। यहां की शांति, सुंदरता और पवित्रता का वातावरण मन को गहरी संतुष्टि देता था। पर्यटकों की भीड़ के बावजूद यहां एक अलग तरह की शांति महसूस होती थी। यमुना नदी का किनारा, हरे-भरे बगीचे, और ताजमहल की छवि पानी में दिखाई देना - यह सब मिलकर एक अविस्मरणीय दृश्य बनाता था। यह अनुभव मुझे जीवनभर याद रहेगा और यह समझ आया कि क्यों ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में गिना जाता है। यह केवल एक इमारत नहीं बल्कि मानवीय प्रेम, कला और सभ्यता की अमर कृति है।

प्रश्न 7

नदी, कुएं, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठक से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।

उत्तर:

मेरा उत्तर लेखक के पक्ष में है। सिंधु घाटी सभ्यता को निर्विवाद रूप से 'जल-संस्कृति' कहा जा सकता है।

सबसे पहले भौगोलिक स्थिति को देखते हैं तो यह सभ्यता सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के तटीय क्षेत्रों में फली-फूली थी। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल जैसे मुख्य नगर सभी नदियों के किनारे स्थित थे। यह दिखाता है कि इन लोगों ने अपनी सभ्यता का विकास जल स्रोतों को केंद्र में रखकर किया था। नदियों से उन्हें न केवल पीने का पानी मिलता था बल्कि सिंचाई, परिवहन, और व्यापारिक गतिविधियों के लिए भी जल का उपयोग होता था। यह प्रमाणित करता है कि उनका पूरा जीवन जल के चारों ओर केंद्रित था।

जल प्रबंधन की तकनीकी उत्कृष्टता इस सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी। प्रत्येक घर में निजी कुआं या सामुदायिक कुएं तक पहुंच की व्यवस्था उस समय के लिए असाधारण थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने भूमिगत नालियों का जटिल तंत्र विकसित किया था जो आज भी इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है। हर घर से लेकर मुख्य नाली तक गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था इतनी सुचारू थी कि आधुनिक शहरों में भी ऐसी व्यवस्था दुर्लभ है। यह दिखाता है कि वे जल विज्ञान और स्वच्छता के सिद्धांतों में कितने निपुण थे।

महान स्नानागार का निर्माण इस बात का सबसे स्पष्ट प्रमाण है कि इनकी संस्कृति में जल का विशेष महत्व था। यह केवल स्नान का स्थान नहीं था बल्कि संभवतः धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र था। इसकी निर्माण तकनीक इतनी उन्नत थी कि पानी रिसने की संभावना नहीं थी। सीढ़ियों की व्यवस्था, पानी भरने और निकालने की प्रणाली, और आसपास के कमरे सब कुछ स्नान संस्कृति के महत्व को दर्शाते हैं। यह दिखाता है कि उनके लिए स्वच्छता और शुद्धता केवल शारीरिक आवश्यकता नहीं बल्कि सांस्कृतिक मूल्य थी।

व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियों में भी जल की केंद्रीय भूमिका थी। लोथल का गोदीबाड़ा समुद्री व्यापार के लिए बनाया गया था जो उनकी जल परिवहन की समझ को दर्शाता है। नदी मार्गों का उपयोग करके वे दूर-दराज के क्षेत्रों से व्यापारिक संबंध बनाए हुए थे। मेसोपोटामिया तक उनके व्यापारिक संबंध थे जो समुद्री और नदी मार्गों के माध्यम से संभव थे। यह प्रमाणित करता है कि उनकी आर्थिक संपन्नता भी जल संसाधनों पर आधारित थी।

कृषि व्यवस्था में भी जल की केंद्रीय भूमिका थी। नदियों से सिंचाई की व्यवस्था, बाढ़ के पानी का नियंत्रण, और जल संरक्षण की तकनीकें उनकी कृषि संस्कृति के आधार थे। अनाज के विशाल भंडारागार मिले हैं जो सिंचित कृषि की समृद्धता को दर्शाते हैं। गेहूं, जौ, और अन्य फसलों का उत्पादन जल प्रबंधन की उत्कृष्टता का परिणाम था। यह सब मिलकर एक संपूर्ण जल-आधारित कृषि संस्कृति का चित्र प्रस्तुत करते हैं।

आधुनिक भारतीय संस्कृति में भी जल का यही महत्व दिखाई देता है। गंगा, नर्मदा, गोदावरी जैसी नदियों की पूजा, तीर्थस्थानों पर स्नान की परंपरा, और जल को जीवन का आधार मानने की मान्यता - ये सभी परंपराएं संभवतः सिंधु सभ्यता से ही शुरू हुई हैं। हमारे त्योहारों में जल का विशेष स्थान, स्नान का धार्मिक महत्व, और जल संरक्षण की चेतना सब कुछ उसी जल-संस्कृति की निरंतरता दिखाते हैं।

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता में जल केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं था बल्कि उनकी पूरी जीवनशैली, नगर योजना, सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक गतिविधियों और संभवतः धार्मिक मान्यताओं का केंद्र था। इसलिए इसे 'जल-संस्कृति' कहना पूर्णतः उचित और तर्कसंगत है। यह परंपरा आज भी भारतीय संस्कृति में जीवित है और हमारी सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग है।

प्रश्न 8

सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही भाषणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन में इससे कोई खिन्न भावना या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह चर्चा करें।

उत्तर:

व्यक्तिगत भावनाएं और विचार:

सिंधु सभ्यता के लिखित साक्ष्य का अभाव निश्चित रूप से एक खिन्नता और अफसोस की भावना पैदा करता है। जब मैं सोचता हूं कि हमारे पास केवल पुरातत्विक अवशेष हैं और उस समय के लोगों के विचार, भावनाएं, साहित्य, और दैनिक जीवन की बारीकियों के बारे में हम सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं तो मन में एक गहरी निराशा होती है। उनकी भाषा कैसी थी, वे क्या सोचते थे, कैसे अपने प्रेम को व्यक्त करते थे, उनके गीत-संगीत कैसे थे, कौन से त्योहार मनाते थे - इन सभी के बारे में हम कुछ नहीं जानते। यह एक अपूरणीय क्षति लगती है।

इसके साथ ही एक अधूरेपन की भावना भी होती है। जब हम मिस्र के हायरोग्लिफिक्स पढ़ सकते हैं, मेसोपोटामिया की कीलाक्षर लिपि समझ सकते हैं, लेकिन अपनी ही सभ्यता की लिपि नहीं पढ़ सकते तो यह वास्तव में दुखदायी है। उनके महान व्यक्तित्व, राजा, कवि, विद्वान, या धार्मिक गुरुओं के नाम तक हम नहीं जानते। उनकी कहानियां, पौराणिक कथाएं, ऐतिहासिक घटनाएं सब कुछ अंधकार में खो गए हैं। यह एक सांस्कृतिक विरासत की हानि है जिसकी भरपाई संभव नहीं है।

लेकिन दूसरी ओर जब मैं इस पर गहराई से विचार करता हूं तो यह भी लगता है कि शायद यही इस सभ्यता की खूबसूरती है। अज्ञात का एक आकर्षण होता है जो हमारी कल्पना को उड़ान देता है। जो कुछ भी हम इन अवशेषों से समझते हैं वह हमारे अनुभव और कल्पना का मिश्रण होता है। यह रहस्यमयता इस सभ्यता को और भी दिलचस्प बनाती है। हर नई खोज एक साहसिक अभियान की तरह लगती है जहां हम अतीत के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश करते हैं।

समूह चर्चा के मुख्य बिंदु:

हमारी कक्षा में इस विषय पर बहुत जीवंत चर्चा हुई। कुछ विद्यार्थियों का मानना था कि लिखित साक्ष्य ही सबसे विश्वसनीय होते हैं क्योंकि वे तथ्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना था कि अनुमानों पर आधारित इतिहास अधूरा और संदेहजनक होता है। दूसरे समूह का विचार था कि पुरातत्विक साक्ष्य भी उतने ही विश्वसनीय होते हैं क्योंकि कार्य और कलाकृतियां झूठ नहीं बोलतीं। उनका मानना था कि भौतिक अवशेष वास्तविक जीवन की सच्ची तस्वीर पेश करते हैं जबकि लिखित इतिहास कभी-कभी पक्षपातपूर्ण हो सकता है।

तीसरे समूह ने एक दिलचस्प बात कही कि मौखिक परंपरा भी इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। हो सकता है सिंधु सभ्यता की कुछ परंपराएं आज भी हमारी संस्कृति में जीवित हों लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पा रहे। योग, ध्यान, स्नान की परंपरा, और प्रकृति पूजा जैसी प्रथाएं संभवतः उसी समय से चली आ रही हैं। चौथे समूह का सुझाव था कि आधुनिक तकनीक से शायद भविष्य में सिंधु लिपि को पढ़ा जा सके। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, कंप्यूटर एल्गोरिदम, और तुलनात्मक भाषा विज्ञान के नए तरीकों से यह संभव हो सकता है।

भविष्य की संभावनाएं:

चर्चा के दौरान यह भी बात निकली कि नई खुदाई से और भी महत्वपूर्ण खोजें हो सकती हैं। DNA अध्ययन से सिंधु सभ्यता के लोगों की वंशावली का पता चल सकता है। भूविज्ञान और पर्यावरण अध्ययन से उस समय की जलवायु और प्राकृतिक परिस्थितियों की जानकारी मिल सकती है। समुद्री पुरातत्व से नए शहरों की खोज हो सकती है। सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि कभी न कभी द्विभाषी शिलालेख मिल सकता है जैसे कि रोसेटा स्टोन मिस्र के लिए मिला था।

सामूहिक निष्कर्ष:

हमारी कक्षा के अधिकांश विद्यार्थियों का निष्कर्ष यह था कि लिखित साक्ष्य का अभाव निराशाजनक है लेकिन यह सिंधु सभ्यता की महानता को कम नहीं करता। उनके कार्य ही उनके शब्द हैं और वे आज भी हमसे बात करते हैं। उनकी तकनीकी उत्कृष्टता, सामाजिक समानता, और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता आज भी प्रेरणादायक है। यह सभ्यता हमें सिखाती है कि सच्ची महानता दिखावे में नहीं बल्कि कर्म में होती है। भले ही हमारे पास उनके लिखे शब्द न हों लेकिन उनके द्वारा किए गए काम आज भी गवाही देते हैं कि वे कितने महान थे। यही उनका सबसे बड़ा 'लिखित दस्तावेज' है।

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